PM Viksit Bharat Rozgar Yojana 2025: युवाओं को ₹15,000 और नियोक्ताओं को ₹3,000 का लाभ, जानें आवेदन प्रक्रिया और पात्रता
प्रधानमंत्री रोज़गार योजना 2025 के तहत युवाओं को ₹15,000 और नियोक्ताओं को ₹3,000 दिए जाएँगे। पात्रता और आवेदन प्रक्रिया जानें।

Pradhan Mantri Viksit Bharat Rozgar Yojana :-भारत एक युवा देश है। यहां की कुल आबादी में लगभग 65% से अधिक लोग 35 वर्ष से कम आयु के हैं। इतनी बड़ी संख्या में युवाओं को यदि सही दिशा, अवसर और रोज़गार उपलब्ध हो जाए तो भारत आने वाले वर्षों में विश्व की सबसे तेज़ी से विकसित होने वाली अर्थव्यवस्था बन सकता है। लेकिन यदि यही युवा बेरोज़गार रह जाएं, तो यह स्थिति न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी चुनौतीपूर्ण हो सकती है।
इसी सोच को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2025 को लाल किले से एक नई महत्वाकांक्षी योजना की घोषणा की – प्रधानमंत्री विकसित भारत रोजगार योजना (Pradhan Mantri Viksit Bharat Rozgar Yojana – PM-VBRY)। यह योजना युवाओं को पहली नौकरी का सीधा लाभ और उद्योगों को नए रोजगार सृजन के लिए प्रोत्साहन प्रदान करती है।
सरकार ने इस योजना के लिए ₹1 लाख करोड़ का बजट निर्धारित किया है और लक्ष्य रखा है कि 1 अगस्त 2025 से 31 जुलाई 2027 के बीच 3.5 करोड़ नौकरियां सृजित की जाएं।
योजना की आवश्यकता क्यों पड़ी?
भारत में बेरोज़गारी लंबे समय से एक गंभीर समस्या रही है। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी कई युवा नौकरी पाने में असमर्थ रहते हैं। दूसरी ओर निजी क्षेत्र की कंपनियां भी कई बार भर्ती करने से हिचकिचाती हैं क्योंकि उन्हें शुरुआती प्रशिक्षण लागत और वेतन संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
कुछ प्रमुख कारण जिनसे यह योजना आवश्यक हुई:
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युवाओं की बढ़ती संख्या – हर साल लाखों छात्र पढ़ाई पूरी करके नौकरी की तलाश में निकलते हैं।
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अनुभव की कमी – कंपनियां अक्सर ‘अनुभव’ वाले उम्मीदवार चाहती हैं, जिससे नए उम्मीदवारों को अवसर नहीं मिल पाता।
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निजी क्षेत्र की चुनौतियाँ – एमएसएमई और छोटी कंपनियों के लिए शुरुआती चरण में अधिक लोगों को नियुक्त करना महंगा पड़ता है।
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आर्थिक विकास की गति – रोजगार सृजन के बिना GDP वृद्धि का लाभ आम लोगों तक नहीं पहुँच पाता।
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आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य – युवाओं को स्किल्ड और आर्थिक रूप से सशक्त बनाना ज़रूरी है।
इन्हीं चुनौतियों को देखते हुए सरकार ने यह योजना बनाई, ताकि युवा और नियोक्ता दोनों को साथ-साथ प्रोत्साहन मिल सके।
योजना की प्रमुख विशेषताएँ
प्रधानमंत्री विकसित भारत रोजगार योजना एक रोज़गार-लिंक्ड प्रोत्साहन योजना है, जिसे कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) के माध्यम से लागू किया जाएगा।
युवाओं के लिए लाभ
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नकद प्रोत्साहन – पहली बार निजी क्षेत्र में नौकरी मिलने पर ₹15,000 का सीधा लाभ।
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किस्तों में भुगतान –
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पहली किस्त: लगातार 6 महीने नौकरी करने पर।
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दूसरी किस्त: 12 महीने पूरे करने पर।
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बचत को बढ़ावा – दूसरी किस्त की राशि का कुछ हिस्सा बचत साधन में जमा किया जाएगा।
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वित्तीय साक्षरता – दूसरी किस्त पाने के लिए वित्तीय साक्षरता मॉड्यूल पूरा करना अनिवार्य होगा।
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कौशल विकास – युवाओं को स्किल डेवलपमेंट और उद्यमिता प्रशिक्षण भी मिलेगा।
नियोक्ताओं के लिए लाभ
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हायरिंग इंसेंटिव – नए कर्मचारियों की भर्ती पर ₹3,000 प्रतिमाह तक का लाभ, अधिकतम 2 वर्षों तक।
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मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों को यह लाभ अधिकतम 4 वर्षों तक मिलेगा।
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भर्ती शर्तें –
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50 से कम कर्मचारियों वाली कंपनियों को कम से कम 2 नए लोग नियुक्त करने होंगे।
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50 या उससे अधिक कर्मचारियों वाली कंपनियों को कम से कम 5 नए लोग रखने होंगे।
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पात्रता मानदंड (Eligibility Criteria)
मानदंड | आवश्यकता |
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नौकरी का प्रकार | निजी क्षेत्र में पहली नौकरी |
मासिक वेतन सीमा | ₹1 लाख तक |
नियोक्ता पंजीकरण | EPFO में पंजीकृत |
रोजगार अवधि | 1 अगस्त 2025 – 31 जुलाई 2027 |
EPF अंशदान | अनिवार्य |
पहले EPFO में न हो | हाँ |
न्यूनतम कार्य अवधि | कम से कम 6 माह |
आवेदन की प्रक्रिया
युवाओं के लिए
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पहली नौकरी मिलने पर UAN (Universal Account Number) जनरेट और सक्रिय करना होगा।
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फेस ऑथेंटिकेशन कराना अनिवार्य होगा।
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EPF खाते में अंशदान शुरू करना होगा।
नियोक्ताओं के लिए
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तय संख्या में नए कर्मचारियों की भर्ती करनी होगी।
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सभी नए कर्मचारियों को EPFO में पंजीकृत करना होगा।
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योजना की सभी पात्रता शर्तें पूरी करनी होंगी।
योजना की टाइमलाइन
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शुरुआत – 1 अगस्त 2025
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समापन – 31 जुलाई 2027
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इस अवधि में बनाई गई नौकरियों पर ही प्रोत्साहन मिलेगा।
आर्थिक और सामाजिक महत्व
यह योजना केवल आर्थिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी बहुत अहम है।
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रोज़गार सृजन – 3.5 करोड़ नई नौकरियों का लक्ष्य।
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युवाओं का आत्मविश्वास – पहली नौकरी मिलते ही आर्थिक सुरक्षा।
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निजी क्षेत्र की मजबूती – नियोक्ताओं को प्रोत्साहन मिलने से वे अधिक लोगों को नौकरी देंगे।
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कौशल विकास और बचत – वित्तीय साक्षरता और स्किल ट्रेनिंग से युवा भविष्य के लिए तैयार होंगे।
आत्मनिर्भर भारत – रोजगार, उत्पादन और खपत में वृद्धि से देश आत्मनिर्भर बनेगा।
योजना से जुड़ी चुनौतियाँ
किसी भी महत्वाकांक्षी सरकारी योजना को लागू करते समय अनेक चुनौतियाँ सामने आती हैं। प्रधानमंत्री विकसित भारत रोजगार योजना भी अपवाद नहीं है।
1. युवाओं में जागरूकता की कमी
अक्सर देखा गया है कि ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों के युवा सरकारी योजनाओं के बारे में समय पर जानकारी नहीं पा पाते। यदि इस योजना की सही जानकारी युवाओं तक नहीं पहुँची तो वे इसका लाभ नहीं उठा पाएंगे।
2. नियोक्ताओं की भागीदारी
निजी क्षेत्र के नियोक्ता तभी इस योजना का हिस्सा बनेंगे जब उन्हें लाभ स्पष्ट और सरल तरीके से मिलेगा। यदि प्रक्रिया जटिल रही तो छोटे उद्योग (MSME) इसमें रुचि नहीं लेंगे।
3. दस्तावेज़ीकरण और प्रक्रियात्मक कठिनाइयाँ
EPFO से जुड़ने, UAN सक्रिय करने और फेस ऑथेंटिकेशन कराने जैसी प्रक्रियाएँ पहली बार नौकरी करने वाले युवाओं के लिए कठिन लग सकती हैं।
4. भ्रष्टाचार और फर्जीवाड़ा
कई बार प्रोत्साहन आधारित योजनाओं में फर्जीवाड़े की संभावना रहती है। जैसे – नकली नियुक्तियाँ दिखाकर लाभ लेना, या बार-बार नौकरी बदलकर कई बार फायदा उठाने की कोशिश करना।
5. कौशल अंतराल (Skill Gap)
आज के समय में उद्योगों को तकनीकी रूप से प्रशिक्षित कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। लेकिन लाखों युवाओं के पास पर्याप्त स्किल नहीं होते। अगर यह कमी दूर नहीं हुई तो योजना का पूरा लाभ नहीं मिल पाएगा।
संभावित आलोचनाएँ
सरकारी योजनाओं पर हमेशा कुछ सवाल उठते हैं। यह योजना भी आलोचना से अछूती नहीं है।
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अल्पकालिक दृष्टिकोण – आलोचकों का कहना है कि यह योजना केवल 2 साल के लिए है। लंबे समय में स्थायी रोजगार कैसे मिलेगा, यह स्पष्ट नहीं।
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सरकारी धन का दबाव – ₹1 लाख करोड़ का बजट बहुत बड़ा है। इसका असर अन्य कल्याणकारी योजनाओं पर पड़ सकता है।
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शहरी क्षेत्रों पर ज्यादा फोकस – संभावना है कि यह योजना मुख्य रूप से शहरों और बड़े उद्योगों तक सीमित रह जाए।
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कौशल विकास बनाम नकद प्रोत्साहन – केवल नकद राशि देने से युवा दीर्घकालिक रूप से सक्षम नहीं बनेंगे, असली फोकस स्किल ट्रेनिंग होना चाहिए।
समाधान और सुधार के उपाय
इन चुनौतियों और आलोचनाओं से निपटने के लिए कुछ ठोस कदम उठाए जा सकते हैं।
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व्यापक प्रचार-प्रसार – सरकार को टीवी, रेडियो, सोशल मीडिया और पंचायत स्तर तक जागरूकता अभियान चलाने होंगे।
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प्रक्रिया सरल बनाना – आवेदन और पंजीकरण प्रक्रिया मोबाइल ऐप और ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से आसान करनी होगी।
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सख्त निगरानी – फर्जीवाड़ा रोकने के लिए डिजिटल वेरिफिकेशन और आधार-लिंक्ड ट्रैकिंग का उपयोग किया जाना चाहिए।
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स्किल ट्रेनिंग का विस्तार – योजना को ‘स्किल इंडिया’ और ‘स्टार्टअप इंडिया’ जैसी अन्य पहलों से जोड़ना ज़रूरी है।
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ग्रामीण क्षेत्रों पर विशेष ध्यान – छोटे उद्योगों और कृषि-आधारित व्यवसायों को भी इसमें शामिल करना चाहिए।
विभिन्न क्षेत्रों पर योजना का प्रभाव
1. मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर
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मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों को 4 वर्षों तक इंसेंटिव मिलेगा।
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इससे ऑटोमोबाइल, टेक्सटाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स और इंजीनियरिंग उद्योगों में बड़ी संख्या में नौकरियां पैदा होंगी।
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‘मेक इन इंडिया’ को सीधा फायदा मिलेगा।
2. MSME (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग)
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MSME भारत में कुल रोजगार का 30% से अधिक योगदान करते हैं।
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यह योजना उन्हें नए कर्मचारियों को रखने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन देगी।
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इससे छोटे शहरों और कस्बों में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
3. सेवा क्षेत्र (Service Sector)
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IT, BPO, हेल्थकेयर, एजुकेशन और हॉस्पिटैलिटी में बड़ी संख्या में युवा नियुक्त होंगे।
-
विशेष रूप से IT और BPO कंपनियों को इससे लाभ मिलेगा क्योंकि वे बड़ी संख्या में फ्रेशर्स को नियुक्त करती हैं।
4. कृषि-आधारित उद्योग
-
ग्रामीण युवाओं के लिए डेयरी, खाद्य प्रसंस्करण और एग्री-बिजनेस में नए अवसर पैदा होंगे।
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इससे ग्रामीण क्षेत्रों में पलायन कम होगा।
5. टेक्नोलॉजी और स्टार्टअप्स
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स्टार्टअप कंपनियों को भी नए कर्मचारियों की भर्ती में प्रोत्साहन मिलेगा।
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इससे उद्यमिता और नवाचार (Innovation) को बल मिलेगा।
ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों पर प्रभाव
ग्रामीण क्षेत्र
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योजना से छोटे उद्योगों और कृषि-आधारित व्यवसायों को बढ़ावा मिलेगा।
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ग्रामीण युवाओं को पहली बार औपचारिक नौकरी मिलेगी।
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पलायन कम होगा और गांवों में आर्थिक गतिविधियाँ बढ़ेंगी।
शहरी क्षेत्र
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शहरी युवाओं को निजी कंपनियों में आसानी से नौकरी मिलेगी।
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मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर को नई ऊर्जा मिलेगी।
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शहरों में रोजगार दर बढ़ेगी और उपभोक्ता मांग भी तेज होगी।
अंतरराष्ट्रीय तुलना
भारत से पहले कई देशों ने युवाओं को पहली नौकरी देने के लिए प्रोत्साहन योजनाएँ शुरू की थीं।
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जर्मनी – यहाँ ‘Apprenticeship Programme’ बहुत लोकप्रिय है, जिसमें युवाओं को प्रशिक्षण और स्टाइपेंड दोनों मिलता है।
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जापान – वहां सरकार कंपनियों को युवाओं को नियुक्त करने पर टैक्स छूट देती है।
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अमेरिका – ‘Work Opportunity Tax Credit’ नामक योजना है, जिसमें नियोक्ता को भर्ती पर टैक्स में राहत मिलती है।
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दक्षिण कोरिया – युवाओं के लिए विशेष रोजगार सब्सिडी दी जाती है।
भारत की PM-VBRY इन योजनाओं से प्रेरित है, लेकिन इसमें नकद प्रोत्साहन और वित्तीय साक्षरता को जोड़कर एक अनोखा मॉडल बनाया गया है।
योजना से जुड़ी चुनौतियाँ
किसी भी महत्वाकांक्षी सरकारी योजना को लागू करते समय अनेक चुनौतियाँ सामने आती हैं। प्रधानमंत्री विकसित भारत रोजगार योजना भी अपवाद नहीं है।
1. युवाओं में जागरूकता की कमी
अक्सर देखा गया है कि ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों के युवा सरकारी योजनाओं के बारे में समय पर जानकारी नहीं पा पाते। यदि इस योजना की सही जानकारी युवाओं तक नहीं पहुँची तो वे इसका लाभ नहीं उठा पाएंगे।
2. नियोक्ताओं की भागीदारी
निजी क्षेत्र के नियोक्ता तभी इस योजना का हिस्सा बनेंगे जब उन्हें लाभ स्पष्ट और सरल तरीके से मिलेगा। यदि प्रक्रिया जटिल रही तो छोटे उद्योग (MSME) इसमें रुचि नहीं लेंगे।
3. दस्तावेज़ीकरण और प्रक्रियात्मक कठिनाइयाँ
EPFO से जुड़ने, UAN सक्रिय करने और फेस ऑथेंटिकेशन कराने जैसी प्रक्रियाएँ पहली बार नौकरी करने वाले युवाओं के लिए कठिन लग सकती हैं।
4. भ्रष्टाचार और फर्जीवाड़ा
कई बार प्रोत्साहन आधारित योजनाओं में फर्जीवाड़े की संभावना रहती है। जैसे – नकली नियुक्तियाँ दिखाकर लाभ लेना, या बार-बार नौकरी बदलकर कई बार फायदा उठाने की कोशिश करना।
5. कौशल अंतराल (Skill Gap)
आज के समय में उद्योगों को तकनीकी रूप से प्रशिक्षित कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। लेकिन लाखों युवाओं के पास पर्याप्त स्किल नहीं होते। अगर यह कमी दूर नहीं हुई तो योजना का पूरा लाभ नहीं मिल पाएगा।
संभावित आलोचनाएँ
सरकारी योजनाओं पर हमेशा कुछ सवाल उठते हैं। यह योजना भी आलोचना से अछूती नहीं है।
अल्पकालिक दृष्टिकोण – आलोचकों का कहना है कि यह योजना केवल 2 साल के लिए है। लंबे समय में स्थायी रोजगार कैसे मिलेगा, यह स्पष्ट नहीं।
सरकारी धन का दबाव – ₹1 लाख करोड़ का बजट बहुत बड़ा है। इसका असर अन्य कल्याणकारी योजनाओं पर पड़ सकता है।
शहरी क्षेत्रों पर ज्यादा फोकस – संभावना है कि यह योजना मुख्य रूप से शहरों और बड़े उद्योगों तक सीमित रह जाए।
कौशल विकास बनाम नकद प्रोत्साहन – केवल नकद राशि देने से युवा दीर्घकालिक रूप से सक्षम नहीं बनेंगे, असली फोकस स्किल ट्रेनिंग होना चाहिए।
समाधान और सुधार के उपाय
इन चुनौतियों और आलोचनाओं से निपटने के लिए कुछ ठोस कदम उठाए जा सकते हैं।
व्यापक प्रचार-प्रसार – सरकार को टीवी, रेडियो, सोशल मीडिया और पंचायत स्तर तक जागरूकता अभियान चलाने होंगे।
प्रक्रिया सरल बनाना – आवेदन और पंजीकरण प्रक्रिया मोबाइल ऐप और ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से आसान करनी होगी।
सख्त निगरानी – फर्जीवाड़ा रोकने के लिए डिजिटल वेरिफिकेशन और आधार-लिंक्ड ट्रैकिंग का उपयोग किया जाना चाहिए।
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स्किल ट्रेनिंग का विस्तार – योजना को ‘स्किल इंडिया’ और ‘स्टार्टअप इंडिया’ जैसी अन्य पहलों से जोड़ना ज़रूरी है।
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ग्रामीण क्षेत्रों पर विशेष ध्यान – छोटे उद्योगों और कृषि-आधारित व्यवसायों को भी इसमें शामिल करना चाहिए।
विभिन्न क्षेत्रों पर योजना का प्रभाव
1. मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर
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मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों को 4 वर्षों तक इंसेंटिव मिलेगा।
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इससे ऑटोमोबाइल, टेक्सटाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स और इंजीनियरिंग उद्योगों में बड़ी संख्या में नौकरियां पैदा होंगी।
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‘मेक इन इंडिया’ को सीधा फायदा मिलेगा।
2. MSME (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग)
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MSME भारत में कुल रोजगार का 30% से अधिक योगदान करते हैं।
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यह योजना उन्हें नए कर्मचारियों को रखने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन देगी।
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इससे छोटे शहरों और कस्बों में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
3. सेवा क्षेत्र (Service Sector)
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IT, BPO, हेल्थकेयर, एजुकेशन और हॉस्पिटैलिटी में बड़ी संख्या में युवा नियुक्त होंगे।
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विशेष रूप से IT और BPO कंपनियों को इससे लाभ मिलेगा क्योंकि वे बड़ी संख्या में फ्रेशर्स को नियुक्त करती हैं।
4. कृषि-आधारित उद्योग
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ग्रामीण युवाओं के लिए डेयरी, खाद्य प्रसंस्करण और एग्री-बिजनेस में नए अवसर पैदा होंगे।
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इससे ग्रामीण क्षेत्रों में पलायन कम होगा।
5. टेक्नोलॉजी और स्टार्टअप्स
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स्टार्टअप कंपनियों को भी नए कर्मचारियों की भर्ती में प्रोत्साहन मिलेगा।
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इससे उद्यमिता और नवाचार (Innovation) को बल मिलेगा।
ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों पर प्रभाव
ग्रामीण क्षेत्र
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योजना से छोटे उद्योगों और कृषि-आधारित व्यवसायों को बढ़ावा मिलेगा।
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ग्रामीण युवाओं को पहली बार औपचारिक नौकरी मिलेगी।
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पलायन कम होगा और गांवों में आर्थिक गतिविधियाँ बढ़ेंगी।
शहरी क्षेत्र
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शहरी युवाओं को निजी कंपनियों में आसानी से नौकरी मिलेगी।
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मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर को नई ऊर्जा मिलेगी।
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शहरों में रोजगार दर बढ़ेगी और उपभोक्ता मांग भी तेज होगी।
अंतरराष्ट्रीय तुलना
भारत से पहले कई देशों ने युवाओं को पहली नौकरी देने के लिए प्रोत्साहन योजनाएँ शुरू की थीं।
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जर्मनी – यहाँ ‘Apprenticeship Programme’ बहुत लोकप्रिय है, जिसमें युवाओं को प्रशिक्षण और स्टाइपेंड दोनों मिलता है।
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जापान – वहां सरकार कंपनियों को युवाओं को नियुक्त करने पर टैक्स छूट देती है।
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अमेरिका – ‘Work Opportunity Tax Credit’ नामक योजना है, जिसमें नियोक्ता को भर्ती पर टैक्स में राहत मिलती है।
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दक्षिण कोरिया – युवाओं के लिए विशेष रोजगार सब्सिडी दी जाती है।
भारत की PM-VBRY इन योजनाओं से प्रेरित है, लेकिन इसमें नकद प्रोत्साहन और वित्तीय साक्षरता को जोड़कर एक अनोखा मॉडल बनाया गया है।